अध्याय 1 – पहली मुलाक़ात वसंत की शुरुआत थी, जगह थी इटली का फ़्लोरेंस। संकरी कंकरीली गलियों में ताज़ा बेक हुई ब्रेड की ख़ुशबू तैर रही थी और दूर किसी चौक से वायलिन की मधुर धुन गूंज रही थी। लंदन से आई एमा अपने हाथ में कैमरा लिए गलियों में घूम रही थी, हर एक नज़ारे को कैद करती हुई, मानो यूरोप की हर सुंदरता को अपनी यादों में बुन लेना चाहती हो। जब वह पोंटे वेक्चियो पुल के पास पहुँची और नदी में पड़ती सुनहरी छवि को अपनी डायरी में स्केच करने लगी, तभी एक कोमल सी आवाज़ ने उसके विचारों की लय तोड़ी। “बहुत ख़ूबसूरत नज़ारा है, है ना?” एमा ने मुड़कर देखा। सामने खड़ा था लुका—रोम का एक युवा आर्किटेक्ट। उसकी मुस्कान गर्मजोशी भरी थी, लहज़ा सहज, पर उसकी आँखों में कुछ ऐसा था जिसने एमा को पल भर में अपनी ओर खींच लिया। एमा ने हल्की हंसी में जवाब दिया—“हां, बिल्कुल। लेकिन तुम इटालियनों के लिए तो ये रोज़ का नज़ारा है। क्या तुम्हें कभी ये सब साधारण नहीं लगता?” लुका ने मुस्कुराकर कहा—“कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जिनकी आदत कभी नहीं लगती। जैसे ख़ूबसूरती… या तक़दीर।” बस यही एक वाक्य दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता बुन गया। उ...
भूतनी की बारात भारत के एक छोटे से गाँव बनकटपुर की बात है। गाँव ग़रीब था, मिट्टी के कच्चे घर, घासफूस की छतें, मगर लोग दिल से अमीर थे। चारों ओर हरे-भरे खेत, जिनमें गेहूँ की बालियाँ हवा में झूमतीं, नहर का ठंडा पानी बच्चों की हँसी के साथ बहता, और पेड़ों पर बैठी चिड़ियाँ ऐसे गातीं जैसे पूरा दिन कोई मेला हो। गाँव के आँगनों में गायें घंटियाँ बजातीं, बकरियाँ बच्चों के पीछे-पीछे दौड़तीं, घोड़े शादी-ब्याह में दूल्हे को सजाने के लिए ही रखे जाते थे, और बिल्ली तो हर घर की सदस्य थी—कभी दूध चुरा लेती, तो कभी चुपचाप बच्चों के साथ सो जाती। गाँव में लोग ग़रीबी में भी खुश थे। कोई सोने-चाँदी नहीं था, मगर रिश्तों का सोना था। शाम को सब लोग बरगद के नीचे जमा होते, बीड़ी पीते, हँसते, गाते और कहानियाँ सुनते। मगर गाँव में एक ही डरावनी बात मशहूर थी— “भूतनी की बारात” । कहते हैं, बरसों पहले गाँव की सीमा पर एक पेड़ के नीचे दफ़न एक औरत की आत्मा रहती थी। वह मरते वक्त दुल्हन बनी थी, मगर उसकी शादी पूरी नहीं हो पाई। तब से, हर साल सावन के महीने में, वह पूरी बारात लेकर आती। ढोल-नगाड़े बजते, घोड़े हिनहिनात...